मीलाद उन नबी के इस त्योहार का इतिहास काफी पुराना है। विभिन्न मुस्लिम समुदायों का इस पर्व को लेकर अपना अलग-अलग तर्क है। सुन्नी समुदाय द्वारा इस दिन को शोक के रुप में मनाया जाता है, वही शिया समुदाय द्वारा इस दिन को जश्न के रुप में मनाया जाता है। इसी तारीख को इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था और इसी तारीख को उनका इंतकाल भी हुआ था। इस्लाम के रुप में उनके द्वारा विश्व को एक शानदार तोहफा दिया गया था क्योंकि उनके द्वारा इस्लाम का संदेश देने से पहले अरब समाज में तमाम तरह की बुराईयां व्याप्त थी। लोगो द्वारा अपनी बेटियों को जिंदा जला दिया जाता था। जरा जरा सी बातों पर झगड़ा और तलवारों का इस्तेमाल करना आम बात थी। लेकिन रसूल के नबी मोहम्मद साहब ने इस्लाम के द्वारा लोगो को जीने का नया तरीका सीखाया।
उनके जीवन में उनकी उपलब्धियां अनगिनत हैं क्योंकि अपने शिक्षाओं द्वारा उन्होंने अरबों के कबिलाई समूहों को एक सभ्य समाज में बदल दिया। इस्लाम के पूर्व समाज में इन बुराईयों के कारण लोग छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे का कत्ल कर दिया करते थे। इस्लाम के आने के बाद अरब के बर्बर कबीलों में ना सिर्फ सभ्यता का उदय हुआ बल्कि की भाई-चारे का भी विकास हुआ और यह सब संभव सिर्फ इस्लाम और कुरान के संदेश के कारण हो पाया। वैसे तो इस त्योहार को लेकर ऐसी मान्यता है कि यह पर्व पैगंबर मोहम्मद साहब के इंतकाल के बाद से ही मनाया जा रहा है। हालांकि सन 1588 में उस्मानिया साम्राज्य के दौरान इस त्योहार को काफी लोकप्रियता मिली और तब से हरवर्ष की इस तरीख को काफी भव्य रुप से मनाया जाना लगा। यहीं कारण हर वर्ष इस्लामिक कैलेंडर की 12 रबी अल अव्वल को यह त्योहार इतने धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।